
औद्योगिक क्रांति ने पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के लिए एवं औद्योगिक समाज को श्रमिकों और पूंजीपतियों से अलग करने के लिए सामाजिक पुनर्गठन की योजना बनाकर एक मंच गठित किया। पूंजीपतियों के पास संसाधन और उत्पादन दोनों के ही साधन मौजूद होते हैं, जबकि श्रमिक अपनी सेवाएं पूंजीपतियों को बेचतें हैं। देखा जाए तो दोनों समूह किसी भी सामान्य रुचि को साझा नहीं करते हैं।
श्रमिकों को अधिक वेतन और बेहतरीन कामकाजी व्यवस्था चाहिए जबकि पूंजीपति श्रमिकों के सीमित शक्ति का फायदा उठाकर उन्हें उनके अधिकारों से वंचित करते हैं। इसके अलावा, नियोक्ता अधिक काम भी कराना चाहते हैं। जब इन विरोधी हितों में टकराव होता है तो औद्योगिक विवाद की उत्पत्ति होती है।
हालाँकि कई समस्याएँ इन औद्योगिक विवादों को जन्म दे सकती हैं, मुख्य कारणों का पता लगाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
काम में रुकावट अनदेखी की गई समस्याओं के कारण भी महसूस हो सकती हैं, लेकिन बारीकी से जांच पड़ताल पर यह पता चल सकता है कि इनके पीछे भी वो गम्भीर, मुख्य कारण हो सकते हैं जिन्हें पहली नज़र में समझा नहीं जा सकता है। औद्योगिक संबंध विशेषज्ञों ने खुलासा किया है कि सभी पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में दोनों पक्षों के बीच विवादों का कारण समान है।
विषयसूची
औद्योगिक विवाद
औद्योगिक विवाद कर्मचारियों और नियोक्ताओं के बीच, नियोक्ताओं और श्रमिकों के बीच, या श्रमिकों और श्रमिकों के बीच किसी आपसी असहमति के अभाव के कारण उत्पन्न हो सकता है, जिसमें उनके रोजगार या समापन या उनके रोजगार या काम के नियमों और शर्तों के संबंध में विवाद होता है(औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947, धारा 2के)।
औद्योगिक विवादों की प्रकृति
- नियोक्ताओं के बीच, मज़दूरों के बीच, या दोनों के आपसी मतभेद में मतभिन्नता या विचार विभिन्नता हो सकती है।
- विषय का किसी व्यक्ति से कुछ लेना-देना होना चाहिए:
- रोजगार या
- रोजगार की कमी,
- उनके काम की शर्तें, या
- उनके काम करने का तरीका,
- कोई औद्योगिक मामला
- नियोक्ता और कर्मचारी के बीच एक संबंध होना चाहिए, चाहे वह एक समझौते के आधार पर हो या स्थायी नियुक्ति पर हो।
औद्योगिक विवादों के कारण
वेतन एवं भत्तों की मांग
भारत में औद्योगिक विवादों का प्रमुख कारण वेतन और लाभों की वृद्धि की मांग है। हालांकि मूल्य तेजी से बढ़ रहे हैं, वेतन वृद्धि में महंगाई के साथ कदम नहीं रखा गया है। इसलिए, कामगार अपने वेतन में वृद्धि की मांग करने के लिए हड़ताल पर जाते हैं। भारत में अधिकांश श्रम विवाद मजदूरों की बढ़ी हुई वेतन की मांग से ही उत्पन्न होते हैं। यदि नियोक्ताओं ने वेतन और मूल्यों में स्वतः बदलाव के लिए सुनिश्चित कदम उठाए होते, तो असहमतियां कई हद तक कम हो सकती थी।
बोनस की मांग
भारत में औद्योगिक विवादों का एक और बड़ा कारण, बोनस की अधिक माँग भी है। श्रमिक चाहते हैं कि नियोक्ता अपने औद्योगिक इकाइयों के मुनाफे को उनके साथ साझा करें, लेकिन नियोक्ता इतनी आसानी से मुनाफे पर भरोसा नहीं करते हैं। आपातकाल के दौरान सरकार ने अपना विचार बदल दिया और बोनस दर को 8.33% से घटाकर 4% कर दिया। इसके बाद, न्यूनतम बोनस दर को बढ़ाकर 8.33% कर दिया गया। 1961 और 1971 के बीच, भारत में औद्योगिक विवादों का 46%-50% कारण वेतन और बोनस रहे। 1976 से 1984 के बीच देश में हुए सभी औद्योगिक विवादों का 32%-40% कारण बोनस और वेतन के मुद्दे रहे।
कर्मचारी एवं छंटनी
छंटनी एवम् कर्मचारियों के मुद्दे भी भारत में औद्योगिक विवादों के मुख्य कारणों में से एक है और यह औद्योगिक विवादों के प्राथमिक कारण भी हैं। 1961 और 1976 के बीच, ये लगभग 29% विवादों का कारण बने। 1981 से 1984 तक, देश में सभी औद्योगिक विवादों में से 21% से 22% विवादों का कारण केवल छंटनी और कर्मचारी मुद्दे ही थे।
कामकाजी परिस्थितियों में सुधार की मांग
भारत में औद्योगिक विवाद इसलिए पैदा हुए क्योंकि श्रमिक काम की स्थितियाँ में सुधार चाहते थे, जैसे छुट्टी, कम कार्यसीमा, बेहतर सुरक्षा उपाय, कैंटीन और अन्य सुविधाएँ। ये सभी मांगे लगभग 2% से 3% विवादों का कारण बनी।
तालाबंदी
देश में औद्योगिक विवादों का एक महत्वपूर्ण कारण तालाबंदी भी है। तालाबंदी तब होती है जब हड़तालें बहुत लंबे समय तक चलती हैं और व्यापारी साँघों द्वारा समय पर एवं जिम्मेदार तरीके से कार्यवाही नहीं की जाती।
औद्योगिक विवादों का समाधान
औद्योगिक विवादों का समाधान करना बहुत ज़रूरी होता है क्योंकि ये दीर्घकालिक विवाद ही देशभर में एक अस्वस्थ औद्योगिक विकास के सुचक होते हैं।इसलिए सरकार ने पहले ही देश में श्रम विवादों का प्रभावपूर्ण रूप से समाधान करने के लिए विभिन्न कदम और कई प्रभावी नीतियां तय की हैं।
इन नीतियों के मुख्य उद्देश्य कुछ इस प्रकार हैं:
- औद्योगिक विवादों को रोकना और पूर्ण शांति से उनका समाधान करना और
- कर्मिकों के बीच बेहतर संबंधों को प्रोत्साहित करना।
1947 में, भारत सरकार ने औद्योगिक विवाद अधिनियम कोपारित किया, जिसे फिर से 1956 में संशोधित किया गया। इस अधिनियम को औद्योगिक विवादों के समाधान एवं रोकथाम के लिए पारित किया गया था।
इस अधिनियम के कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल हैं:
सुलह
इस अधिनियम के तहत सरकार नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए सुलह अधिकारियों की नियुक्ति एवं सुलह परिषदों का गठन कर सकती है।
कार्य समितियां
अधिनियम के अनुसार सभी कम्पनियों में एक कार्य समिति का गठन किया जाना चाहिए जिनमें 100 से अधिक नियुक्तियां हैं, ताकि कर्मचारियों और नियोक्ताओं के बीच स्वस्थ संबंध बने रहें।
जांच न्यायालय
यदि सुलह से विवाद का समाधान नहीं हो पाता है, तो विवाद को जांच और रिपोर्ट के लिए जांच न्यायालय में भेजा जाना चाहिए।
श्रम न्यायालय
सरकारों ने बर्खास्तगी, निलंबन, हड़ताल, तालाबंदी और अन्य कारकों से संबंधित विवादों को सुलझाने के लिए श्रम अदालतों की स्थापना की है।
निष्कर्ष
भारत ने 1947 में औद्योगिक प्रतिष्ठानों के बीच शांति और समान्यता को बढ़ावा देने के लिए, औद्योगिक विवाद कानून को पारित किया। यदि कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो यह अधिनियम एक उचित एवं न्यायसंगत समाधान की सुविधा देता है जिसमें सभी पक्ष संतुष्ट होते हैं, और निर्णय न्यायसंगत और निष्पक्ष होते हैं। 1947 के इस औद्योगिक विवाद कानून ने श्रम विवादों को व्यापक रूप से नियंत्रित करने का काम किया है। इस अधिनियम के तहत, केंद्र सरकार और औद्योगिक कानून मंडल को उद्योगों की गतिविधियों की देखरेख, नियामकन और निगरानी करने की शक्ति प्रदान की गई है। व्यवसाय और औद्योगिक नियम बनाने से कर्मचारी के अधिकारों की रक्षा हो सकती है और समस्याओं का नियमित रूप से समाधान हो सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
औद्योगिक विवाद कब उत्पन्न होते हैं?
एक औद्योगिक विवाद का तात्पर्य कर्मचारियों और नियोक्ताओं के बीच, नियोक्ताओं और श्रमिकों के बीच या श्रमिकों और श्रमिकों के बीच रोजगार की शर्तों या किसी व्यक्ति की कार्य स्तिथियों सेसंबंधित किसी भी विवाद से होता है।
औद्योगिक विवादों को कम करने के लिए सरकार ने क्या किया है?
औद्योगिक शांति और समांतरता सुनिश्चित करने के लिए, 1947 का औद्योगिक विवाद अधिनियम सरकारों को औद्योगिक विवादों को सुलझाने के लिए, अतिआवश्यक होने पर, उचित प्राधिकारी की नियुक्ति का अधिकार देता है।
औद्योगिक विवादों में कौन से अधिकारी भूमिका निभाते हैं?
इस अधिनियम में विभिन्न प्राधिकरणों की स्थापना की गई है, जिनमें एक कार्य समिति, एक सुलह अधिकारी, एक सुलहकर्ता बोर्ड, एक जांच न्यायालय, एक श्रम न्यायालय, एक न्यायाधिकरण और एक राष्ट्रीय न्यायाधिकरण शामिल हैं।
भारत में औद्योगिक विवादों का सबसे प्रमुख कारण क्या है?
उच्च वेतन की मांग औद्योगिक विवादों का सबसे प्रमुख कारण है।