एक अनुबंध कब अवैध अनुबंध बन जाता है?

पार्टियों के बीच किसी समझौते का अवैध होना, यानी कानून के खिलाफ होना, उस समझौते को पूरी तरह अमान्य कर देता है। इसका मतलब यह है कि अगर कोई अनुबंध किसी प्रकार से अवैध है, तो उसके तहत आने वाले किसी भी पक्ष को कोई कानूनी मदद नहीं मिल सकती।

हालांकि, यदि कोई समझौता अवैध है, तो इसका मतलब ये नहीं है कि किसी पक्ष को कोई कानूनी राहत नहीं मिल सकती। अदालत अनुबंध दर्ज करते वक़्त, विचार करके यह सुनिश्चित करती है कि समझौते के दौरान कोई भी पक्ष अवैध कार्यों में शामिल न हुआ हो।

एक अवैध अनुबंध क्या है?

निम्नलिखित परिस्थितियों में एक अनुबंध अवैध होता है:

  • यह कानून के ख़िलाफ़ है
  • इसका एक ग़ैरक़ानूनी उद्देश्य होता है
  • इसमें धोखाधड़ी शामिल हो सकती है और किसी अन्य व्यक्ति या संपत्ति को लुटना हो सकता है
  • यदि न्यायालय किसी अनुबंध को अनैतिक या सार्वजनिक नीति के ख़िलाफ़ मानता है

ऐसे समझौते अवैध हैं, कानून द्वारा दंडनीय हैं, और शुरुआत से ही अमान्य माने जाते हैं।

जब एक पक्ष कोई ऐसा समझौता करना चाहता हो जो कानून द्वारा वर्जित है, तो उस समझौते के दावों को रोकने के लिए एक अवैध अनुबंध बनाया जाता है। ऐसे मामलों में, अवैधता, क़ानूनी दावों के खिलाफ एक प्रमुख सुरक्षा हथियार होती है।

अदालतें उन्हीं दावेदारों के ख़िलाफ़ अपना निर्णय देतीं हैं जो किसी अपराध से लाभ लेना चाहते हैं। अगर किसी समझौते में अवैध गतिविधि शामिल है तो उसकी अवैधता घटनाओं के कारणों को देखकर तय की जाती है जिसके बदले असहमति बनी।

अवैध अनुबंध के उदाहरण

  • नशीली दवाओं जैसे ग़ैर-क़ानूनी पदार्थों की खरीद या बिक्री के लिए अनुबंध
  • क़ानून द्वारा वर्जित अवैध गतिविधियों के लिए अनुबंध
  • कामकाजी उम्र से कम श्रमिकों के लिए रोजगार अनुबंध
  • राज्य सरकार से लड़ने के लिए अनुबंध
  • अवैध खनन के ठेके-पट्टे
  • कानूनी कार्यवाही पर रोक लगाने वाले अनुबंध
  • माता-पिता के अधिकारों पर रोक लगाने वाले अनुबंध
  • ग़ैर-क़ानूनी रूप से बनाए गए एकाधिकार अनुबंध

सरकारी अनुबंध

भारत के संविधान के अनुच्छेद 299 के अनुसार, सरकार के कार्यकारी शक्ति के तहत सरकार के पक्ष से किए गए सभी अनुबंध राष्ट्रपति या राज्यपाल के नाम पर होने चाहिए। किसी भी अनुबंध को सरकारी अनुबंध तभी माना जाता है जब वह राष्ट्रपति या राज्यपाल के नाम पर ही बनाया गया हो। इसके अलावा, एक अधिकृत व्यक्ति को अपनी ओर से कार्यवाही करने के लिए सभी अनुबंध शर्तों को लागू करना चाहिए।

अवैध समझौता

किसी भी कानून का उल्लंघन करना एक अवैध समझौते के अन्तर्गत आता है। इसका स्वरूप ग़ैर-क़ानूनी, सार्वजनिक नीति के ख़िलाफ़ या अनैतिक होता है। चुकि ये समझौते शुरू से ही अमान्य होते हैं, तो फलस्वरूप मूल समझौते के साथ जुड़े अन्य अनुबंध भी अमान्य हो जाते हैं। इस संदर्भ में, मूल समझौते से जुड़े समझौते उपाधिक समझौते कहलाते हैं।

क्योंकि कानून ऐसे समझौतों पर सख्ती से रोक लगाता है, इसलिए इनमें शामिल होना एक दंडनीय अपराध माना जाता है। इसलिए, ऐसे समझौतों में शामिल पक्षों को भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित किया जाता है। उदाहरण के लिए, एक अवैध समझौते में अस्पष्ट शर्तों वाला कोई समझौता या किसी की हत्या के लिए किया गया समझौता शामिल हो सकता है।

शून्य और अवैध अनुबंधों के बीच अंतर

शून्य अनुबंध एक ऐसा अनुबंध होता है जो अवैध तो नहीं है लेकिन इसका कोई कानूनी प्रभाव भी नहीं है। यह अनुबंध अधिनियम की धारा 2 (जी) के अनुसार ‘कानून द्वारा लागू नहीं होने वाला समझौता’ माना जाता है।

ठीक इसके विपरीत, ग़ैर-क़ानूनी अनुबंध का कानूनी प्रभाव तो नहीं होता है लेकिन यह कानून के ख़िलाफ़ है।

अवैध अनुबंध का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि मुख्य अनुबंध के साथ किए गए किसी भी समझौते या लेनदेन को भी यह अवैध बना देता है और परिणामस्वरूप अप्रवर्तनीय हो जाता है।

शून्य अनुबंध, किसी भी अवैध अनुबंध की तुलना में काफी व्यापक होता है क्योंकि सभी अवैध अनुबंध शून्य होते हैं, लेकिन सभी शून्य अनुबंध अवैध नहीं होते हैं।

निष्कर्ष

अवैध अनुबंध विभिन्न प्रकार के होते हैं, और ऐसे सभी अनुबंध निरर्थक और अमान्य होते हैं। अनुबंधों को भी अवैध माना जा सकता है, जैसे यदि किसी भी पक्ष का आचरण कानून का उल्लंघन करता है या जिसे अन्य लोग अपमानजनक या गलत मानते हैं।

जब कोई पक्ष किसी अनुबंधिक विवाद में अवैधता को संरक्षण के रूप में पेश करता है, तो दोषी पक्ष को यह साबित करना चाहिए कि अनुबंध या अनुबंध में प्रवेश करने के लिए किए गए कार्य गैरकानूनी थे।

अधिकांश मामलों में, अदालत किसी भी पक्ष को धन से जुड़ी हुई कोई राहत नहीं देती क्योंकि एक अवैध अनुबंध, किसी प्रकार का अनुबंध होता ही नहीं है। इसलिए, यदि कोई फ़रियादी प्रतिवादी के खिलाफ अनुबंध-उल्लंघन का कोई दावा पेश करता है, लेकिन दोषी का दावा है कि अनुबंध अवैध है, तो अवैध अनुबंध के अदालती निर्णय से फ़रियादी को उल्लंघन के लिए कोई मुआवजे की अनुमति नहीं होगी। अनुबंध स्वयं शून्य होता है और प्रभावी रूप से खारिज कर दिया जाता है।

अवैध अनुबंध पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

क्या किसी ग़ैर-क़ानूनी उद्देश्य के लिए अनुबंध में प्रवेश करना संभव है?

यदि उद्देश्य ग़ैर-क़ानूनी है और सार्वजनिक नीति के ख़िलाफ़ है, तो अनुबंध अवैध और अमान्य होता है, और इसका कोई कानूनी प्रभाव नहीं पड़ता है।

क्या अवैध समझौते अमान्य हैं?

अवैध समझौते ऐसे समझौते हैं जिनमें उद्देश्य या विचारक कानूनी रूप से प्रभावी नहीं होता है और कानून द्वारा दंडनीय है। इसलिए, अवैध अनुबंध शुरुआत से ही अमान्य होते हैं।

क्या अदालतों के पास अवैध अनुबंधों को लागू करने का अधिकार है?

आम तौर पर, अवैध अनुबंध अमान्य होते हैं, और अदालत अक्सर अवैध अनुबंध को लागू करने से इनकार कर देती है।

अवैध अनुबंध क्या होता है?

"अवैध अनुबंध" वह समझौता है जिसमें विषय वस्तु किसी ग़ैर-क़ानूनी उद्देश्य से संबंधित होता है और कानून का उल्लंघन करता है।