
सिविल कानून नियमों और विनियमों का एक निकाय है जो उन विवादों को सुलझाने के लिए बनाया गया जो कि ग़ैर-आपराधिक हैं । सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (सीपीसी), भारत में सिविल कार्यवाही के संचालन को अनुशासित करने वाला कानून है।
सिविल मुक़दमेबाज़ी गैर-आपराधिक विवाद हल करने के लिए लागू किया जाता है। इसमें मुकदमे की फाइलिंग और उसके बाद आवेदन की प्रक्रिया शामिल होती है।
नागरिक मुकदमेबाजी और इसके महत्व के बारे में यहाँ पर एक दिशानिर्देश दिया गया है।
विषयसूची
सिविल मुकदमा क्या है?
सिविल मुकदमेबाजी के तहत नागरिक विवादों का समाधान अदालत में होता है। इन विवादों में रिश्तों से संबंधित विवाद जैसे विवाह, या कंपनियों के बीच किए गये अनुबंध शामिल हो सकते हैं। यह आपराधिक मामलों से भिन्न होता है जिसमें स्वयं नागरिक या कंपनीयां अपने मामलों के न्याय के लिए अदालत की शरण में जाते हैं।
आपराधिक कार्यवाही की तुलना में सिविल कार्यवाही में सबूत का मानक कम कठोर होता है। वकीलों को अपने मामले को जीतने के लिए न्यायाधीश या जूरी के सामने अधिक सबूत पेश करने की आवश्यकता होती है, और वे इसमें अपने विरोधियों के खिलाफ अधिक ठोस से ठोस सबूत पेश करते हैं।
ठीक इसके विपरीत,आपराधिक मामले को जीतने के लिए वकीलों को ठोस सबूत पेश करने के अलावा, अपने केस की मजबूती के लिए अपने मुवक्किल को संदेह रहित साबित करना होता है ताकि कोई भी संदेह न रहे कि वे किसी प्रकार से दोषी हैं।
नागरिक मुकदमे के प्रकार
सिविल मुक़दमेबाज़ी की बात करने के बाद, चलते हैं सिविल मुकदमेबाज़ी के विभिन्न प्रकारों की तरफ़।
ज़्यादातर क़ानूनी मामले नागरिक मुक़दमेबाज़ी के अन्तर्गत ही आते हैं। यह मामले आमतौर पर व्यक्तिगत लोगों के बीच होते हैं, जैसे कि मकान मालिक और किरायेदार के बीच का झगड़ा भी नागरिक मुकदमेबाजी का ही एक रुप है।
कुछ और भी उदाहरण इस प्रकार हैं:-
चिकित्सीय लापरवाही
डॉक्टर्स या अन्य मेडिकल विशेषज्ञ जो बीमारियों और चोटों का इलाज करते हैं, कभी-कभी गलत इलाज करके स्थिति को ख़राब कर देते हैं। इन चिकित्सकों की ग़लतियों और घोर लापरवाही की स्थिति में, मरीज चिकित्सा खर्च और अन्य लागतों के लिए मुकदमा दायर कर सकता है।
आकस्मिक चोटें
यह उदाहरण भी एक तरह का नागरिक मुक़दमा है। काम करते समय लापरवाही के कारण, यदि किसी को चोट लगती है, तो वकील को आमतौर पर यह सुनिश्चित करने के लिए रखना होता है कि चोट से जुड़ी चिकित्सा व्यय को कवर करवाया जा सके।
तलाक विवाद
तलाक़ के बाद अलगाव की स्थिति में संपत्ति का विभाजन और बच्चे की देख रेख के बारे में कई महत्वपूर्ण निर्णय लेने होते हैं। बिना मुकदमेबाज़ी इन सभी विवरणों को जानना हमेशा संभव नहीं हो पाता है।
पेटेंट पर मुकदमा
जब कोई पक्ष किसी अन्य पक्ष के निर्माण या आविष्कार के पेटेंट या ट्रेडमार्क का उल्लंघन करता है, तो प्रथम पक्ष को कानूनी कदम उठाने का हक होता है। उन्हें यह क्षमता मिलती है कि वे अपने पेटेंट या ट्रेडमार्क का गलत उपयोग करने वाले विरोधी के खिलाफ कानूनी कदम उठा सकें और क्षति का मुआवजा मांग सकें। यदि कोई बिना इजाज़त के किसी पेटेंट के डिज़ाइन को बनाता या बेचता है, तो पेटेंट धारक को वित्तीय नुकसान के लिए कानूनी कदम उठाने का भी हक़ है।
जनहित में मुकदमा
यह मुकदमेबाजी कानून की एक नयी शाखा है, जिसमें अदालतें समुदाय की सुरक्षा और उसकी उन्नति की रक्षा के लिए मामले दायर करती हैं। कोई भी व्यक्ति या कम्पनी जिसके कार्य से सामाजिक विकास को नुकसान पहुंचता है या उसमें बाधा पड़ती हैं, तो उन्हें कानूनी नतीजों का सामना करना पड़ सकता है।
अक्सर, इस प्रकार की मुकदमेबाजी पर्यावरण, सामाजिक समस्याओं, और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताओं के लिए होती है।
व्यापारिक एवं व्यवसायिक मामले
व्यापारिक और व्यवसायिक मामले उन झगड़ों की स्थिति हैं जो साझेदारों, शेयरधारकों, व्यापार मालिकों, प्रतिस्पर्धी कंपनियों, ऋणदाताओं, विक्रेताओं या किसी अन्य के बीच हो सकती हैं। व्यापारिक मुकदमों में अनुबंध उल्लंघन, कर्तव्य उल्लंघन, कॉपीराइट उल्लंघन, धोखाधड़ी, ट्रेडमार्क उल्लंघन, अनुचित प्रतिस्पर्धा, और क्षतिपूर्ति शामिल हो सकते हैं। जब आपसी सहमति नहीं बन पाती है तो ये मुकदमें शुरू होते हैं।
सिविल कानून मामले के मुख्य कदम
एक सिविल मुकदमा निम्न तीन चरणों की प्रक्रिया है:
- संस्थान
- परीक्षण
- निर्णय
संस्थान चरण में निम्न उपचरण हैं:
- एक मुकदमें की स्थापना
- समन जारी करना और तामील कराना
- विरोधी पक्ष की उपस्थिति
- विरोधी पक्ष का लिखित बयान और दावों का निपटारा
- विरोधी पक्ष द्वारा उत्तर-जवाब
- मुद्दें का निर्धारण
परीक्षण चरण कुछ इस प्रकार आगे बढ़ता है:
- फ़रियादी के साक्ष्य
- फ़रियादी के साक्ष्यों का जिरह
- विरोधी पक्ष के साक्ष्य
- विरोधी पक्ष के साक्ष्यों का जिरह
- अंतिम तर्क
निर्णय चरण की प्रक्रिया शुरू होती है:
- निर्णय/आदेश
- हुक्मनामे की समीक्षा
- निवेदन
- हुक्मनामे का आदेश पारित कराना
दिवानी मामले के केस शुरुआत एक शिकायत या याचिका के दस्तावेज़ से होती है। यह दस्तावेज़ मामले की पूरी जानकारी देता है कि किस क्षेत्रीय अदालत के पास पूरा मामला है, और यह भी बताता है कि शिकायतकर्ता क्या निवारण चाहता है (उदाहरण के लिए, धन का जुर्माना पैसे या निषेधाज्ञा)।
फिर विरोधी पक्ष को अदालत में समन भेजा जाता है जिससे उन्हें मामले के खिलाफ जानकारी मिलती है और यह भी की उन्हें किस दिन अदालत में पेश होना है।आमतौर पर, विरोधी को 30 दिन का समय मिलता है अपने जवाब और आपत्तिकरण के दावों का जवाब देने के लिए। अगर विरोधी समय पर जवाब नहीं देता है, तो अदालत फ़रियादी के पक्ष में डिफ़ॉल्ट निर्णय दे सकती है।
इस स्तर पर, यदि फ़रियादी के पास कुछ ठोस कानूनी सबूत नहीं होते हैं और केस कानूनी दृष्टि से कमजोर होता है, तो फ़रियादी की शिकायत को खारिज भी किया जा सकता है।
फ़रियादी के प्रतिक्रिया देने के बाद, कोई भी पक्ष संक्षेप में निर्णय के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकता है।
किसी भी विशेष सिविल मामले की प्रक्रिया कुछ इस तरह होती है:
परीक्षण चरण: सिविल कोर्ट मामले के चरण आपराधिक मामले के समान ही होते हैं, केवल यहाँ सबूत के मामले में थोड़ा फर्क होता है।
हालांकि, दीवानी मामले में फ़रियादी को केवल यह दिखाने की आवश्यकता होती है कि विरोधी पक्ष ही जिम्मेदार है।
वादी और प्रतिवादी, दोनों पक्षों के वकील सबसे पहले जज के सामने शुरुआती बयान पेश करते हैं, अपने मुवक्किल के सभी तर्कों को रेखांकित करते हैं और अपने अपने दावों को साबित करने के लिए मुकदमे में पेश किए गए सबूतों का सारांश देते हैं।
विरोधी पक्ष के साक्ष्यों की जाँच और सवाल-जवाब: फ़रियादी को पहले सारे सबूत प्रस्तुत करने होते हैं जब तक कि विरोधी पक्ष फ़रियादी के आरोपों को स्वीकार न कर ले।
प्रतिवादी के बचाव पक्ष के वकील वादी से सभी साक्ष्यों की जाँच करते हैं। फ़रियादी के गवाहों को अदालत में उपस्थित होना होता है और विरोधी पक्ष के वकील द्वारा उन सभी की सत्यता जाँच होती है।
अंतिम तर्क: दोनों पक्षों के वकील ज्यूरी के सामने अपना अपना अंतिम तर्क प्रस्तुत करते हैं, अपने मामलों का संक्षेप देते हैं और जूरी सदस्यों को उनके सभी दाओं के बारे में समझाते हैं।
निर्णय/डिक्री: अदालत अंतिम तर्क के दिन ही अपना निर्णय दे सकती है या फिर कुछ दिनों के लिए निर्णय स्थगित कर सकती है।
लंबी प्रक्रिया होने के कारण इन मुक़दमों के समाधान में वर्षों लग जाते हैं। विशिष्ट मामलों में, फ़रियादी और प्रतिवादी मुकदमे से बचने के लिए एक समझौते पर पहुँच सकते हैं।
सिविल मुकदमेबाजी के वकीलों का काम
सिविल मुकदमेबाजी के वकील अनेक कामों को करते हैं। उदाहरण देखें तो वे अपने मुवक्किल को सर्वोत्तम परिणाम पाने में मदद करते हैं। वे अदालत में अपने मुवक्किल की ओर से बोलते हैं और सुनवाई करते हैं। कई बार तो अपने ग्राहक के प्रति दायित्वों के कारण, नागरिक मुकदमेबाजी के वकील, इस पूरी प्रक्रिया के दौरान नागरिक के लिए अन्य भूमिकाएँ भी निभा सकते हैं।
उदाहरण देखें तो पहला कि जब कोई सिविल मामला आता है, तो सिविल मुकदमेबाजी के वकील ये सुनिश्चित करते हैं कि सारे सबूत ठीक से जमा हों। और दूसरा जब मामला अदालत में चलता है, तो उनपर आवश्यक दलीलों और गतियों को प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी भी होती है।
निष्कर्ष
नागरिक मुकदमेबाजी और उससे जुड़े कामों को यहाँ विस्तृत किया गया है।
संक्षेप में, सिविल मुकदमेबाजी एक ऐसी कानूनी प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य विवादों को सुलझाना है। सिविल मुकदमेबाजी में शामिल प्रक्रियाएँ थोड़ी मुश्किल हो सकती हैं।
इसलिए, एक बेहतर परिणाम के लिये, कानून की विस्तृत जानकारी वाले सिविल मुकदमेबाजी वकील से सलाह लेना आपकी मदद कर सकता है।